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गांव में पेयजल का गहराता संकट
December 9, 2015, 03:52 PM
अमृतांज इंदीवर
फोन नं0 09693901871
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वैष्विक स्तर पर जल संकट हर एक मुल्क के लिए गंभीर चुनौती है। यह विडंबना ही है कि भारत के विभिन्न नगर- महानगरों में जल संकट के साथ-साथ षुद्ध पेयजल का संकट आज एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। दिल्ली, कोलकता, महाराश्ट्र, चेन्नई, आदि महानगरों की जनता पानी खरीदकर पीने के लिए विवष है। जबकि भारत जैसे गणराज्य के लिए पेयजल की व्यवस्था हेतु सरकार के करोड़ों रुपये योजना व परियोजना में बहाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अनुसार सभी ग्राम पंचायतों में साफ और स्वच्छ जल लोगो तक पहुँचाया जाये इस उद्देश्य को मूल लक्ष्य बनाया गया है इसके साथ ही निर्मल भारत अभियान के अंतर्गत भी सभी गाँव और कस्बो तक साफ स्वच्छ जल लोगो को उपलब्ध कराने का प्रावधान रखा गया है और तो और फाइव स्टार होटलों व रेस्टूरेंट में सभा, समारोह, संगोश्ठी, बैठक में जल संरक्षण व पेयजल की समस्याओं पर चर्चाएं भी खूब हो रही है। ऐसी जगहों से योजनाओं को आकार व साकार रूप देने की पहल हो रही है, जहां आमलोगों व प्रभावित लोगों की भागीदारी नगण्य रहती है। योजना-परियोजना को मूर्त रूप देने के लिए एजेंसियां नियुक्त होती हैं और जमीन पर आते-आते पेयजल की व्यवस्था कागज तक सिमट जाती है। आज देष के 80 प्रतिषत से अधिक लोग मैले-कुचैले और आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरनयुक्त पानी पीने को मजबूर हैं। इनके लिए यह पानी तब घातक होता है, जब वे अस्पताल तक पहुंच जाते हैं और डाॅक्टर कहता है कि पानी की गड़बड़ी से अमुक बीमारी हो गई। षहरवासी गाहे-बगाहे षुद्ध पेयजल की व्यवस्था अपनी जेब से कर लेते हैं। बिसलेरी की बोतल, आरओ वाटर प्यूरिफायर, सप्लाई टंकी के पानी से प्यास बुझा लेते हंै, क्योंकि वे षिक्षित, सक्षम, जागरूक व साधन संपन्न हैं। षहर में हर एक मुहल्ले में पानी सप्लाई की व्यवस्था की गई है। वाटर सप्लाई कंपनियों से होम डिलीवरी के माध्यम से भी पानी की आपूर्ति करती है। प्रत्येक घर के सदस्य पेयजल को लेकर इतने जागरूक जरूर होते हैं कि वे क्लोरिन या टीसीएल पाउडर का उपयोग करके पानी का षुद्धिकरण कर लेते हैं।जिससे वे स्वस्थ्य और आनंदित रहते हैं।
वहीं, असली भारत यानि ‘गांव’ आज अषुद्ध पेयजल की समस्याओं से जूझ रहा है।न पानी टंकी, न जानकारी, न वाटर प्यूरिफायर और न कोई आधुनिक पेयजल षुद्धिकरण का साधन।कुछ जगह पानी टंकी है भी तो मृतप्राय है। षहर के लोग बिसलेरी और गांव के लोग लाल, पीला, और गंधयुक्त पानी पीने को मजबूर हैं। यह रंग पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन और घातक रसायन के हैं।अधिकांष चापाकल अमृत की जगह जहर उड़ेल रहा है।सरकारी चापाकल की दुर्गति किसी से छुपी नहीं है।औसतन 40-60 फीट की गहराई पर चापाकल गाड़े गए हैं।पीएचइ की ओर सेै हैंडपंप मात्र 60-80 फीट की गहराई तक गाड़े गए हैं।जबकि पानी का जलस्तर सेकेण्ड लेयर तक प्रदूषित और खतरनाक है।मुजफ्फरपुर जिले के साहेबगंज प्रखंड के अन्तर्गत हुस्सेपुर के पंकज कुमार सिंह, हरिशंकर पाठक, भूषण सिंह, चांदकेवारी के हरेन्द्र प्रसाद, विनोद जयसवाल, मो. हसरत अली, प्रमोद भगत, रामचन्द्र भगत आदि कहते हैं कि दो साल पहले पीएचइ विभाग ने षुद्ध पेयजल के लिए हैंडपंप गाड़ा।पर,गहराई कम होने की वजह से लाल व पीले रंग का पानी निकलता है,जो देखने से ही पीने योग्य नहीं है। पर, मजबूरी में हमलोग पानी पीकर बीमारी को दावत दे रहे हैं।दूसरी ओर गांव में तकरीबन 20 से अधिक कुंए का सौंदर्यीकरण के लिए पंचायत ने चबूतरे बनवाये हैं।लेकिन पानी का क्लोरिनकृत नहीं किया गया।किसान कुएं के पानी का उपयोग माल-मवेषी को धोने के लिए करते है। इस गांव के अधिकांष लोग मजदूर व किसान हैं।पूरे गांव में 10-12 सरकारी हैंडपंप है,जो ठप पड़ा है।आष्चर्य की बात तो यह है कि इन भोले-भाले किसानों को जल षुद्धिकरण व जल से होने वाले नुकसान की जानकारी भी नहीं है।चांदकेवारी पंचायत के सोहांसी गांव स्थित हरिजन बस्ती में तकरीबन 60 परिवार रहते हैं। बस्ती में एक-दो कुएं हैं जो ठप पड़े हैं।सरकारी हैंडपंप40-60 फीट पर गाड़े गए हैंै, जिससे पानी गंधयुक्त और लाल-पीला निकलता है। इस बस्ती के अधिकतर लोग विकलांगता, दमा, कैंसर, पेट की समस्या, पीलिया आदि रोग से ग्रस्त हैं। इस बस्ती के राजकुमार पासवान कहते हैं कि सरकार की यह जिम्मेदारी है कि पेयजल की उचित व्यवस्था करे। लेकिन सरकार के हुक्मरान और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की वजह से हैंडपंप उपयुक्त जलस्तर तक नहीं गाड़ा गया है। पानी को रात में किसी बोतल या पात्र में रख दिया जाता है, तो सुबह होते ही लाल-पीला व गंधयुक्त हो जाता है। ऐसे में कंठ की प्यास बुझाने के लिए पीना पड़ता है।आइएएनएस की रिपोर्ट की मानें तो गंगा के दोनांे ओर स्थित बिहार के करीब 15 जिलों के भू जल में आर्सेनिक की मात्रा में बढ़ोतरी की वजह से इस इलाके के लोगों में कैंसर का खतरा बढ़ गया है। गंगा किनारे अवस्थित 57 विकास खंडों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा जबर्दश्त बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा के कारण ही लोगों में किडनी व लीवर के कैंसर, गैंगरीन जैसी खतरनाक बीमारियां पैर पसार रही है। लोक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का मानना है कि भोजपुर, बक्सर, वैशाली, भागलपुर, समस्तीपुर, खगडि़या, कटिहार, छपरा, मुंगेर व दरभंगा जिलों में आर्सेनिक की भारी मात्रा मिली है। समस्तीपुर जिले के हराइल छपरा गांव में भूजल के नमूने की जांच में 2100 पीपीबी आर्सेनिक की मात्रा पायी गई है।पेयजल का संकट केवल बिहार ही नहीं बल्कि देष के अन्य प्रदेषों के लिए भी नासूर बन गया है। देष की लाखों जनता सरकारी कुव्यवस्था की वजह से अषुद्ध और दूशित पानी पीने को विवश हैं। नतीजा बीमारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।राश्ट्रीय स्तर पर पेयजल संकट का मुद्दा उठना चाहिए। सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर बहस होनी चाहिए कि 70 प्रतिषत गांव की जनता कब तक जहरीला पानी पीती रहेगी ? क्यों सभी मुद्दा राश्ट्रीय मुद्दे बनते हैं और सेहत व जीवन से संबंधित मुद्दे गौण हो जाते हैं? बहरहाल, गांव में षुद्ध पेयजल की व्यवस्था पर ध्यान देने की आवष्यकता है।सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को पेयजल परीक्षण और षुद्धिकरण के लिए लोगों को जागरूक करना, इसके होने वाले नुकसान का प्रचार-प्रसार करना, ग्रामीण स्तर पर हैंडपंप गाड़ने संबंधी अनियमितता को दूर करना बेहद जरूरी है। स्थानीय स्तर पर क्लोरिन, टीसीएल पाउडर की उपलब्धता सुनिष्चित करना सरकार की प्रथम जवाबदेही है। साथ हीं ठप पड़े ग्रामीण पेयजल टंकी की सफाई और सप्लाई को नियमित करते हुए हैंड पंप, कुएं आदि का जीवन उद्यार कर स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत की परिकल्पना को पूरा किया जा सकता है क्योंकि जल ही जीवन है। (चरखा फीचर्स)
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वैष्विक स्तर पर जल संकट हर एक मुल्क के लिए गंभीर चुनौती है। यह विडंबना ही है कि भारत के विभिन्न नगर- महानगरों में जल संकट के साथ-साथ षुद्ध पेयजल का संकट आज एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। दिल्ली, कोलकता, महाराश्ट्र, चेन्नई, आदि महानगरों की जनता पानी खरीदकर पीने के लिए विवष है। जबकि भारत जैसे गणराज्य के लिए पेयजल की व्यवस्था हेतु सरकार के करोड़ों रुपये योजना व परियोजना में बहाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अनुसार सभी ग्राम पंचायतों में साफ और स्वच्छ जल लोगो तक पहुँचाया जाये इस उद्देश्य को मूल लक्ष्य बनाया गया है इसके साथ ही निर्मल भारत अभियान के अंतर्गत भी सभी गाँव और कस्बो तक साफ स्वच्छ जल लोगो को उपलब्ध कराने का प्रावधान रखा गया है और तो और फाइव स्टार होटलों व रेस्टूरेंट में सभा, समारोह, संगोश्ठी, बैठक में जल संरक्षण व पेयजल की समस्याओं पर चर्चाएं भी खूब हो रही है। ऐसी जगहों से योजनाओं को आकार व साकार रूप देने की पहल हो रही है, जहां आमलोगों व प्रभावित लोगों की भागीदारी नगण्य रहती है। योजना-परियोजना को मूर्त रूप देने के लिए एजेंसियां नियुक्त होती हैं और जमीन पर आते-आते पेयजल की व्यवस्था कागज तक सिमट जाती है। आज देष के 80 प्रतिषत से अधिक लोग मैले-कुचैले और आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरनयुक्त पानी पीने को मजबूर हैं। इनके लिए यह पानी तब घातक होता है, जब वे अस्पताल तक पहुंच जाते हैं और डाॅक्टर कहता है कि पानी की गड़बड़ी से अमुक बीमारी हो गई। षहरवासी गाहे-बगाहे षुद्ध पेयजल की व्यवस्था अपनी जेब से कर लेते हैं। बिसलेरी की बोतल, आरओ वाटर प्यूरिफायर, सप्लाई टंकी के पानी से प्यास बुझा लेते हंै, क्योंकि वे षिक्षित, सक्षम, जागरूक व साधन संपन्न हैं। षहर में हर एक मुहल्ले में पानी सप्लाई की व्यवस्था की गई है। वाटर सप्लाई कंपनियों से होम डिलीवरी के माध्यम से भी पानी की आपूर्ति करती है। प्रत्येक घर के सदस्य पेयजल को लेकर इतने जागरूक जरूर होते हैं कि वे क्लोरिन या टीसीएल पाउडर का उपयोग करके पानी का षुद्धिकरण कर लेते हैं।जिससे वे स्वस्थ्य और आनंदित रहते हैं।
वहीं, असली भारत यानि ‘गांव’ आज अषुद्ध पेयजल की समस्याओं से जूझ रहा है।न पानी टंकी, न जानकारी, न वाटर प्यूरिफायर और न कोई आधुनिक पेयजल षुद्धिकरण का साधन।कुछ जगह पानी टंकी है भी तो मृतप्राय है। षहर के लोग बिसलेरी और गांव के लोग लाल, पीला, और गंधयुक्त पानी पीने को मजबूर हैं। यह रंग पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन और घातक रसायन के हैं।अधिकांष चापाकल अमृत की जगह जहर उड़ेल रहा है।सरकारी चापाकल की दुर्गति किसी से छुपी नहीं है।औसतन 40-60 फीट की गहराई पर चापाकल गाड़े गए हैं।पीएचइ की ओर सेै हैंडपंप मात्र 60-80 फीट की गहराई तक गाड़े गए हैं।जबकि पानी का जलस्तर सेकेण्ड लेयर तक प्रदूषित और खतरनाक है।मुजफ्फरपुर जिले के साहेबगंज प्रखंड के अन्तर्गत हुस्सेपुर के पंकज कुमार सिंह, हरिशंकर पाठक, भूषण सिंह, चांदकेवारी के हरेन्द्र प्रसाद, विनोद जयसवाल, मो. हसरत अली, प्रमोद भगत, रामचन्द्र भगत आदि कहते हैं कि दो साल पहले पीएचइ विभाग ने षुद्ध पेयजल के लिए हैंडपंप गाड़ा।पर,गहराई कम होने की वजह से लाल व पीले रंग का पानी निकलता है,जो देखने से ही पीने योग्य नहीं है। पर, मजबूरी में हमलोग पानी पीकर बीमारी को दावत दे रहे हैं।दूसरी ओर गांव में तकरीबन 20 से अधिक कुंए का सौंदर्यीकरण के लिए पंचायत ने चबूतरे बनवाये हैं।लेकिन पानी का क्लोरिनकृत नहीं किया गया।किसान कुएं के पानी का उपयोग माल-मवेषी को धोने के लिए करते है। इस गांव के अधिकांष लोग मजदूर व किसान हैं।पूरे गांव में 10-12 सरकारी हैंडपंप है,जो ठप पड़ा है।आष्चर्य की बात तो यह है कि इन भोले-भाले किसानों को जल षुद्धिकरण व जल से होने वाले नुकसान की जानकारी भी नहीं है।चांदकेवारी पंचायत के सोहांसी गांव स्थित हरिजन बस्ती में तकरीबन 60 परिवार रहते हैं। बस्ती में एक-दो कुएं हैं जो ठप पड़े हैं।सरकारी हैंडपंप40-60 फीट पर गाड़े गए हैंै, जिससे पानी गंधयुक्त और लाल-पीला निकलता है। इस बस्ती के अधिकतर लोग विकलांगता, दमा, कैंसर, पेट की समस्या, पीलिया आदि रोग से ग्रस्त हैं। इस बस्ती के राजकुमार पासवान कहते हैं कि सरकार की यह जिम्मेदारी है कि पेयजल की उचित व्यवस्था करे। लेकिन सरकार के हुक्मरान और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की वजह से हैंडपंप उपयुक्त जलस्तर तक नहीं गाड़ा गया है। पानी को रात में किसी बोतल या पात्र में रख दिया जाता है, तो सुबह होते ही लाल-पीला व गंधयुक्त हो जाता है। ऐसे में कंठ की प्यास बुझाने के लिए पीना पड़ता है।आइएएनएस की रिपोर्ट की मानें तो गंगा के दोनांे ओर स्थित बिहार के करीब 15 जिलों के भू जल में आर्सेनिक की मात्रा में बढ़ोतरी की वजह से इस इलाके के लोगों में कैंसर का खतरा बढ़ गया है। गंगा किनारे अवस्थित 57 विकास खंडों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा जबर्दश्त बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा के कारण ही लोगों में किडनी व लीवर के कैंसर, गैंगरीन जैसी खतरनाक बीमारियां पैर पसार रही है। लोक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का मानना है कि भोजपुर, बक्सर, वैशाली, भागलपुर, समस्तीपुर, खगडि़या, कटिहार, छपरा, मुंगेर व दरभंगा जिलों में आर्सेनिक की भारी मात्रा मिली है। समस्तीपुर जिले के हराइल छपरा गांव में भूजल के नमूने की जांच में 2100 पीपीबी आर्सेनिक की मात्रा पायी गई है।पेयजल का संकट केवल बिहार ही नहीं बल्कि देष के अन्य प्रदेषों के लिए भी नासूर बन गया है। देष की लाखों जनता सरकारी कुव्यवस्था की वजह से अषुद्ध और दूशित पानी पीने को विवश हैं। नतीजा बीमारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।राश्ट्रीय स्तर पर पेयजल संकट का मुद्दा उठना चाहिए। सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर बहस होनी चाहिए कि 70 प्रतिषत गांव की जनता कब तक जहरीला पानी पीती रहेगी ? क्यों सभी मुद्दा राश्ट्रीय मुद्दे बनते हैं और सेहत व जीवन से संबंधित मुद्दे गौण हो जाते हैं? बहरहाल, गांव में षुद्ध पेयजल की व्यवस्था पर ध्यान देने की आवष्यकता है।सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को पेयजल परीक्षण और षुद्धिकरण के लिए लोगों को जागरूक करना, इसके होने वाले नुकसान का प्रचार-प्रसार करना, ग्रामीण स्तर पर हैंडपंप गाड़ने संबंधी अनियमितता को दूर करना बेहद जरूरी है। स्थानीय स्तर पर क्लोरिन, टीसीएल पाउडर की उपलब्धता सुनिष्चित करना सरकार की प्रथम जवाबदेही है। साथ हीं ठप पड़े ग्रामीण पेयजल टंकी की सफाई और सप्लाई को नियमित करते हुए हैंड पंप, कुएं आदि का जीवन उद्यार कर स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत की परिकल्पना को पूरा किया जा सकता है क्योंकि जल ही जीवन है। (चरखा फीचर्स)
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